Saturday, May 22, 2010

रिश्ते वाकई इतने मुश्किल होते हैं?

ज़िन्दगी में कितने ऐसे लोग मिलते हैं जिन से हम दिल की बात कह सकते हैं? शायद बहोत सारे. मगर कितने ऐसे लोग मिलते हैं जिनसे हम चाह के भी अपने दिल की बात कहने से खुद को रोक नहीं पाते? बहोत कम. इन दो किस्म के लोगों में ऐसे तो ज्यादा फर्क नहीं है मगर हमारा मन इस असमानता को बखूबी समझता है. हिंदी फिल्मों के कई गानों का सार यही होता है के "आते जाते खूबसूरत आवारा सड़कों पे, कभी कभी इत्तेफाक से कितने अनजान लोग मिल जाते हैं, उनमें से कुछ लोग भूल जाते हैं, कुछ याद रह जाते हैं!" लेकिन हमने कभी यह नहीं सोचा होगा के आखिर इस अंतर की वजह क्या है? चँद लोग ज़िन्दगी में ऐसे मिलते हैं जिनसे हमें रिश्ता बनाने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती बस ज़रूरत होती है तो इश्वर के बनाये उस रिश्ते को संभाल के रखने की और यही लोग ठहर जाते हैं साहिल पे रेत की तरह और फिर कुछ वे लोग जिनसे हमें रिश्ता बनाने की कोशिश करनी होती है, वे अक्सर खारे पानी की तरह समंदर के किनारे को छोड़ वापिस अपने सागर में लौट जाते हैं .

बहोत खुबसूरत लगती है ज़िन्दगी उस रेत के साथ. मुट्ठी में भरा पानी बहा भी जाये तो वो रेत कभी आपका दामन नहीं छोडती. आसान सा होता है जीवन इन मुट्ठी भर लोगों के साथ. और इन मुट्ठी भर फरिश्तों के बीच होता है वो एक शख्स जिसे आप अपना बनाने की हर मुमकिन कोशिश करते हैं. और यही वो समय होता है जब आपको प्यार हो जाता है. प्यार अधुरा भी रह जाये तब भी पूरा प्ड जाता है. यही काफी होता है आपके लिए की आपको उसका प्यार चाहे न मिला हो, उसे किसी का प्यार मिल रहा है.

इन सब भावुक सी बातों के बाहर एक सुन्दर सा घरोंदा होता है जिसमें आपके गम आधे और खुशियाँ दुगनी हो जाती हैं. उस घरोंदे में आपके साथ रहते हैं आपके सारे दोस्त जो आपको संवारते हैं, सँभालते हैं और हर परेशानी से बचाते भी हैं.

मैं भी खुश हूँ ए दोस्त बस उनके साथ नहीं, ज़िन्दगी में और कोई गम इतना खास नहीं,
मगर ऐसा भी नहीं की उनकी मोहब्बत को हम सजाये ख्वाबों से, जब उस खवाब में हमारी कोई आस नहीं!!!